Kavi ShreeChandra
कवि श्रीचंद्र
अपभ्रंश भाषा के कवियों में कवि श्रीचंद्र का नाम भी विशेष उल्लेखनीय है। कवि श्रीचंद्र के तीन विशेषण मिलते हैं - कवि, मुनि और पंडित। श्रीचंद्र कवि जैन शासन पर अगाध श्रद्धा रखते थे। श्रीचंद्र कवि होने के साथ-साथ मनोहर शैली के विद्वान भी थे और वे किसी राजा के आश्रय में रहते थे। उनकी रचना से यह भी ज्ञात होता है कि श्रीचंद्र ने दिगंबर दीक्षा अंगीकार की थी। श्रीचंद्र कवि का समय लगभग 11 वीं शताब्दी माना गया है। श्रीचंद्र मुनि की दो रचनाएं उपलब्ध हैं। दंसणकहरयकरण्डु और कहाकीसु।
दंसणकहरयकरण्डु में 21 संधियां हैं। इसमें देव गुरु धर्म के छंद और अपने गुण दोषों का वर्णन किया गया है। साथ ही 10 धर्म, 22 परिषह आदि का भी वर्णन है। इस ग्रंथ में पंचास्तिकाय और छह द्रव्यों का भी वर्णन मिलता है। साथ ही कर्म का वर्णन मिलता है। इसमें अनेक कथायें भी हैं। यह ग्रंथ प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग का समन्वित रूप है।
द्वितीय ग्रंथ कथाकीसु में 53 संधियां हैं। इसमें अनेक कथाओं के माध्यम से न्याय-नीति, कर्म फल, वैराग्य आदि की चर्चा है। इसमें सूर्य मित्र कथा, वासुदेव कथा, पद्मरथ कथा, श्रेणिक चरित्र आदि अनेक कथाएं हैं।